बुधवार, 5 अक्तूबर 2016

' क्रान्तिकारी कविता ' अविच्छिन्न अंग काश्मीर हमारा इसे न हाथ से जाने देंगे

 इस कविता के द्वारा मैंने हिजबुल मुजाहिदीन,जैश-ए-मोहम्मद और अलगाव वादी नेताओं तथा हाफिज सईद आदि जैसे आतंकी फैक्ट्रियों को चलाने वाले एवं भारत में अराजकता फैलाने वाले एवं अपने नापाक इरादों से कश्मीरी नौजवानों को गुमराह करने वाले सनकियों को समझाने वाले अंदाज में एक सन्देश देने की कोशिश की है । 

' क्रान्तिकारी कविता '  अविच्छिन्न अंग काश्मीर हमारा इसे न हाथ से जाने देंगे,


भटके नौजवां आतंकी बन काश्मीर के जर्रे-जर्रे में छैले
छितरे नागफ़नी के काँटों से फुफकारें पाले नाग विषैले ,

क्यूँ रक्षकों के भक्षक बन दुश्मन देश से हाथ मिलाते हो
क्यूँ जन्नत सी धरती पर अपनी काँटों की पौध उगाते हो
संग कौन खड़ा होता विपदाओं में जब भी तुम घिरते हो 
किस आजादी की मांगे कर दिन-रात उत्पात मचातें हो ,

ओ वादी के भोले नादानों कह दो अपने सरगनाओं को
हमें नहीं जेहादी बनना दो टूक जवाब दो आक़ाओं को
हमें तामिल हासिल कर नबील बानी जैसा टॉपर बनना
हमें हुर्रियत जैसे भड़काने वाले नेताओं का पर कतरना ,

तुम्हारी अकर्मन्यतायें ही आतंकों की प्रयोगशालाएं हुईं
क्या कभी हुक्मरानों ने जानी क्या तेरी अभिशालाएं हुईं
अपनी औलादो की करें हिफाज़त तुझे ज़िहाद में झोंकें
तूं कुत्तों की मौत मरे तेरे कुन्बों को खुश करने वो भौंकें ,

पत्थरबाजी खेल,खेलते तुम्हीं वर्दी वालों को उकसाते हो
जब वर्दी हरकत में आती क्यों पैलटगन पर चिल्लाते हो
सारी हदें तुम तोड़ते क्यों पागल माफ़िक होश गंवाते हो
खुद आग लगा हाथ क्यों आग की लपटों में झुलसाते हो ,

यह मत सोचो हमें डराकर कश्मीर हमारा हथिया लोगे
दहशतग़र्द गतिवविधियों से दिल्ली का तख़्त हिला दोगे
अविच्छिन्न अंग काश्मीर हमारा इसे न हाथ से जाने देंगे
रहो चैन से रहने दो वरना हम जन्नत की राह दिखा देंगे ,

मत इस ग़फ़लत में रहना ऐ आतंक जेहाद के उलेमाओं
देश के नक़्शे से काश्मीर मिटा इस्लामी मुल्क़ बना लोगे
हमने खेलीं ना कच्ची गोलियाँ ना तो गट्टों में चूड़ियां पेन्ही
जब कुपित काल बन घहरेंगे नाशपीटों तो दुम दबा लोगे

क्या कभी भड़काने वालों ने शिक्षा रोजग़ार की बातें कीं
पढ़ो-लिखो तुम अच्छा इन्सान बनो कभी ऐसे जुमले कीं
तूं दिमाग से पैदल है या तेरी अक़्ल को लकवा मार गया
क्यों नहीं समझता गिद्धों ने पैदा खूनी खेलों की नस्लें कीं ,

हम कितने पेशेवर हैं देखो बता दिया सही वक़्त आने पर
जब-जब तोड़ेगा सब्र विवश होंगे इच्छाशक्ति दिखाने पर
क्यूँ भड़काते,भाई से भाई के आंगन में दंगल करवाते हो
कितनी हिदायतें देते ओछी हरकत से बाज नहीं आते हो,

क्यों नौजवानों के मस्तिष्क में बोते तुम नफ़रत के अंगारे
पलते हमारी आस्तीन मे लगवाते पाक ज़िन्दाबाद के नारे
अरे जाहिलों लड़वाओ ना भूख,बीमारी,अशिक्षा,बेगारी से
इत्ते भी अब घाव ना दो वादी वंचित हो जाये किलकारी से ,

घाटी में मरघट फैला,वीरों की शहादत पर जश्न मनाते हो
मुस्टण्डों खाते-पीते हो हिंदुस्तान का हरा रंग फहराते हो
तेरी भाषा में देना आता जवाब आ हम भी सीना तान खड़े
क्यों मधुमक्खी सा भिनभिनाकर तुम छत्तों में घुस जाते हो ,

तुझ माटी के कच्चे घड़ों को मनचाहे आकारों में ढलवाना
मनसूबों के नापाक़ ईरादे तुझे नाकारा निकम्मा बनवाना
ओ कश्मीर के नौनिहालों इन अलगाववादियों से दूर रहो
हिन्दुस्तान लिए जीयो-मरो ऐसा करो के हिन्द के नूर रहो ,

भेदिये का काम करें यही बख़ूबी,यही हैं घुसपैठ करवाते
हम विविधता के बहुरंगों में यह इस्लाम की फ़सल उगाते
देख हिन्द की ताक़त का अन्दाज़ विश्व भी लोहा मान रहा
सरहद पार जो कीर्ति दिखा दी दुनिया भर में सम्मान रहा ,

दहशतग़र्दी की धौंस दिखा खेल न खून भरी पिचकारी से
खलनायक का रोल भूल खुश्बू फैला केसर की क्यारी से
हाथ न डाल मांद में शेरों की हम चीर फाड़ कर रख देंगे
अपनी धर्म,संस्कृति की रक्षा हेतु जान हथेली पर रख देंगे

हुक़्मरानों के बरगलाने पर नाक में दम करना अब छोड़ो
बंद करो ये खूनी खेल प्रसारण अंजाम बहुत घातक होगा
और न उकसाओ हिन्दुस्तानी हृदय के तूफानी ज्वारों को
तेरे कुकर्मी कारख़ानों का रोकथाम बहुत विनाशक होगा ।
                                                 
                                                                    शैल सिंह
                                      

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