सोमवार, 6 जुलाई 2015

जालिम करवटें

जालिम करवटें 


बेरहम करवटें जगा कर नींद से
भोर का विभोर सपना चुरा ले गईं ,

चाँद से बात कर रही थी ख्वाब में
पलकों पे तिरते परिंदे उड़ा ले गई ,

सूरज का साया दिखा छल किया
रात सितारों भरी छीन दगा दे गईं  ,

रात भर नींद आई कहाँ याद में ,पर
ख़ुश्बू से तर ये सुबह-ए-समां दे गईं ।

                                 शैल सिंह


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

बचपन कितना सलोना था

बचपन कितना सलोना था---                                           मीठी-मीठी यादें भूली बिसरी बातें पल स्वर्णिम सुहाना  नटखट भोलापन यारों से क...