मंगलवार, 23 जून 2015

फ़तह की चिट्ठी सीमा से घर आई है

  •  फ़तह की चिट्ठी सीमा से घर आई है 


डर सताती रही ख़ौफ़ की हर घडी
फ़तह की चिट्ठी सीमा से घर आई है
मन मतवाला गज सा हुआ जा रहा
ख़ुशी चल एक विरहन के दर आई है ,

बिछ गए हर डगर पर पलक पांवड़े
उनके आने की जबसे खबर आई है
सरसराहट हवा की प्रिय आहट लगे
उनके कदमों की ख़ुश्बू शहर आई है ,

महकने लगी आज़ हर दिशा हर गली 
ज़िस्म का उनके चन्दन पवन लाई है
सांसें स्वागत में लीन आज़ पागल हुईं
कोई रोके ना पथ ज़िंदगी भवन आई है ,

उठे निष्पन्द वदन में भी अंगड़ाईयां
सूनी अँखियों में अंजन संवर आई है,
मन का हिरना कुलांचे भरने लगा है
मन समंदर में हलचल लहर आई है ,

भोली आशाएं कबसे तृषित थीं सनम
वही परिचित सा झोंका ज़िगर भाई है
चाँद,तारों,सितारों की बारात का बिंब
लगे नीले नभ से धरा पर उतर आई है ,

मुख मलिन दिखाता सदा रहा आइना
उसी में सौ रंग ख़ुशी के नज़र आई है
तार झंकृत नयन के इक झलक वास्ते
पथ निरख हर बटोही के गुजर आई है ,

सज कलाई में सावन की हरी चूड़ियाँ
बोल अधरों पर कजरी का भर लाई है
कितने कुर्बां हुए सुहाग वतन के लिए
गृह इस सधवा की रोली मगर आई है ,

                                    शैल सिंह





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