मंगलवार, 30 सितंबर 2014

गिर्दाब में है नैया

गिर्दाब में है नैया

दर-दर भटक रही अर्से से आसेबों से बचा ले
कहाँ है मेरी मंज़िल,मंज़िल से खुद मिला दे ,

जिस चीज की तलाश में पागल बनी हूँ फिरती
चुपके से आके फूल वो आँचल में खुद गिरा दे ,

लड़खड़ाती आस ,वक़्त के गिरदाब में है नैया
बुझती हुई उम्मीदों के पलक दीप खुद जला दे ,

पड़ गए हैं आबले अब तो धैर्य के भी पाँव में
अज़्मे-सफ़र में रब अमां के ग़ुंचे खुद खिला दे ,

ना असास मांगती हूँ ना शम्सो-क़मर ही माँगा
नवाज़िशों से ख़ुदा किश्ते-दिल को खुद सजा दे ,

आशाओं की दहलीज़ पर शिकस्त बस है खाई
अब किस दर पे जाऊँ ले कांसा तूं ही खुद बता दे ,

साईल बना दिया है कहाँ-कहाँ ना झख है मारा
बेताबी-ए-एहसास,बेदर्द दुनिया को ख़ुद दिखा दे ,

नकारते हैं वह भी जो नहीं कहीं से मेरे क़ाबिल
दबा कहाँ तक़दीर का पुलिंदा सुराग़ खुद बता दे ,

मौसम के साथ-साथ उम्र खिसक रही पल-पल
तक़ाज़े का राग मेरे,अंदाज़ के साज़ खुद सुना दे ।

आसेबों -भटकन , गिरदाब -भंवर , आबले-छाले
अज़्मे-सफ़र--अभिलाषा,यात्रा ,  अमां -संतुष्टि
असास-दौलत , शम्सो-क़मर-चाँद,सूरज,
नवाज़िशों-कृपा , क़िश्ते-दिल -हृदय भूमि
कांसा -भीख का कटोरा , साईल -भिखारी                                                            
तक़ाज़े -इच्छाओं ,





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