शनिवार, 20 सितंबर 2014

नक़ाब पर ग़ज़ल

नक़ाब पर ग़ज़ल 


चलती थी सड़कों पे बेनक़ाब
हुस्न  ने  परदा  गिरा  दिया 
जब   याद  ज़माने  ने  मुझे 
उम्र  का  दरजा दिला दिया । 

क़ैद कर लो हिज़ाब  में जरा  
ये शोख़ अदाएं ये मस्त जवानी 
कह - कह कर बुज़ुर्गों  ने  मेरे
ज़िस्म का ज़र्रा-ज़र्रा जला दिया । 

मुड़ -मुड़  के  देखते  थे  लोग 
जिस गली से  कूच करती थी 
मेरी  बेबसी का ऐ  खुदा  तूने 
अंजाम  ये कैसा  सिला दिया । 

इस बेबसी  में बतायें ज़नाब 
मुस्कराएं तो भला हम  कैसे 
कहाँ से आई ये पाग़ल शबाब  
जो हमें परदानशीं बना दिया । 

रुख़ पे कैसा लगा रूवाब ये 
किन अल्फ़ाज़ में कहूँ लोगों 
इस बेकसूर  नूरे हूर  को बस 
तसब्बुर का आईना बना दिया  । 

                                   शैल सिंह 

2 टिप्‍पणियां:

  1. होगा आपका हुश्न या मासूमियत ही आपकी होगी...
    वजह बनी कातिल में जो कातिल निगाह की होगी!

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  2. http://swasasan.com/2014/01/10/%e0%a4%95%e0%a5%8d%e0%a4%af%e0%a5%8b%e0%a4%82-%e0%a4%aa%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a4%b6%e0%a5%8d%e0%a4%a8%e0%a4%9a%e0%a4%bf%e0%a4%a8%e0%a5%8d%e0%a4%b9-%e0%a4%b9%e0%a4%b0-%e0%a4%aa%e0%a5%8d%e0%a4%b0/

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