मंगलवार, 19 अगस्त 2014

प्रीति की रेशम डोर वास्ते

प्रीति की रेशम डोर वास्ते


नफ़रतें-रुसवाईयाँ जहाँ भी देखो जिस तरफ 
पश्चिमी तहज़ीब हमें ले जा रही है किस तरफ 
खुदगर्ज़ी सोई है बेफ़िक्र नेकियों की लाश पर 
दूर होता जा रहा आदमी,आदमी से हर तरफ।

दायरा नफ़रतों की आग का बढ़ता ही जा रहा 
सिलसिला बेबाक हादसों का बढ़ता ही जा रहा 
ख़ता पर ख़ता इन्सान कर रहा है ईमान बेचकर 
वेदना की परवाह किसे एहसास मरता जा रहा । 

गुलिस्ताँ से ख़ुशबूवें भी अब बेज़ार होती जा रहीं 
कैसा हुआ ज़माना दामनें दाग़दार होती जा रहीं  
धधक रही दुनिया धर्मान्ध हो हैवानियत के हाथों  
अमन खो गया कहीं ज़िंदगी लाचार होती जा रही । 

भय,जुल्म,आतंक मुक्त जग के दारुण शोर वास्ते  
निडर इब्तिदा करें मिलकर खूबसूरत भोर वास्ते 
गिले-शिक़वे ना हो मन मोहब्बत ही मोहब्बत हो      
आओ नज़ीर पेश करें प्रीति की रेशम डोर वास्ते ।
                                              शैल सिंह

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